शनिवार, 6 जून 2009

जीवन गाथा

जीवन एक कोरा कागज़ है
जो करनी के स्याही से भरता है
काली करनी के स्याही से
क्यों कागज मैला करता है
एक बार जो स्याही लिखता है
एक अमिट छाप बन जाता है
फ़िर मिटने से नही मिटता है
एक अंत दिशा रह जाता है
कागज़ को अलग कराता है
उसका अस्तित्व विमोचन है
फ़िर मूल रूप नही आता है


कुछ इसी तरह जीवन की भी
कागज जैसी ही जुबानी है
एक बार हुआ जो मैला सही
जीवन भर मिट नही पता है

फ़िर उसी रूप में आना हैं
सम्भव ही नही हो पाता है

जीवन का अस्तितत्व गया
उन भूलो का प्रश्चित्य न हुआ
जीवन की गाथा सिमट गई
जीवन को व्यर्थ ही गवां दिया
जो व्यर्थ हुआ सो व्यर्थ हुआ
अब आगे सोच क्या करना है
जो करना है सो जल्दी कर
कही फ़िर न कोई मुशिकल आन पड़े!





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