हे मानव ! तुम शेष नही अब पुरे हो
तेरी गाथा का गान अब देव ऋषि भी गायेंगे
देव तुम्हारी दर्शन को जप तप करते जायेंगे
तुम दर्शन के अभिलाषी सृष्टी के संचालक तुम
पंचतत्व के सार तुम्ही हो
तुम्ही तत्त्व हो ब्रम्ह के
ब्रह्म ज्ञान तुम्हारे भीतर है
ब्रह्माण्ड तुम्ही में समाया
ॐ तुम्हारे कंठ से निकला
स्वर गूंजी हृदय में तेरे
सरस्स्वती के ज्ञान तुम्ही हो
तुम्ही हो उनके सरगम
संगीत तुम्हारे रोम रोम में
सुर ताल तेरे कर कमलो में
तुम ख़ुद के विधि विधाता हो
तुम सर्व सृष्टी के पलक हो
तुम्ही हो आदि तुम्ही अंत हो
तुम्ही केन्द्र ब्रह्माण्ड के
अर्द्ध तुम्ही हो पूर्ण तुम्ही हो
तुम्ही सार ही पाप -पुण्य के
तत्व तुम्ही हो ईश देव के
गीता के वर्णात्मक तुम
तुम्ही शुन्य हो तुम्ही अनंत हो
तुम्ही मध्य के द्योतक हो
तुम्ही अस्त्र हो तुम्ही सस्त्र हो
तुम्ही प्रेम के पुजारी हो
जयकार तेरी हो ब्रह्म जगत में
हो ह्रदय में तेरे भावः सदा
हे मानवता के प्रतिपादक
तेरे चरणों में में जग नतमस्तक !
हे मानव ! तुम शेष नही अब पुरे हो !
हे मानव! तुम शेष नही अब पुरे हो
प्रस्तुत ब्लॉग के जरिये मै जन -साधारण तक अपने भावनाओं को संप्रेषित करता चाहता हूँ जिससे समाज में एक नयी धारा का प्रवाह हो सके ...मानव आज के इस अर्थ-प्रधान युग में एवं विकाश की इस अंधी दौड़ में सामाजिक-मूल्यों एवं उनके ओउचित्य को ही भुला बैठा है ....बस मै अपने कविता के माध्यम से उन सामाजिक ,सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः शुशोभित करना चाहता हूँ जिससे हमारा समाज ही नहीं अपितु समूचा भारत अपने जिस सभ्यता के लिए विश्व के भौगौलिक पटल पर अपनी छाप को बनाये हुए था वो ठीक उसी प्रकार बनी रहे!
Is kavita ke madyam se manav aiv manavta ko naya paribhasha mila hai ......
जवाब देंहटाएंयह् कविता भारतीय दर्शन के हार्द का प्रकटीकरण है.. सत्, सत्ता एवं मानव की सर्वोपरिता का सम्यक् संगायन है.. कवि की उदात्त भावना विस्तीर्ण है.शब्द साधुत तथा उसका सम्यक् संप्रयोग तो अनुभवजन्य समय के साथ निश्चित ही प्राप्त होगा...
जवाब देंहटाएंरजनीश शुक्ल, काशी.
man simply gr8 .. hum aapke kaayal ho gaye sarkaaar
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