अब यह मै जानने लगा हूँ
मानो वह मेरी बचपन की दोस्त हो
मेरी इच्छा थी की मै कुछ बात करूँ
पर समुद्र इतना आविष्ट है
की तुमसे संवाद नही कर पाता
यह महज एक सयोंग है की
सब कुछ कितना सहज लगता है
खोये हुए रास्ते भी कभी घरो तक पहुँच जाते है
और जीवित हो जाती है उनकी यादें
खुदाईयों के बाद घरो का इतिहास तो निकल आता है
पर टूटे हुए दिल ,खोये हुए रास्ते का नही
सपने में रची कविता सुबह तक याद न रही
आँखे खुलते ही टूट गई
मेरे बारे में सबको बताते हुए
तुम्हारे होठो में क्या छिपा रह जाता है
अब यह मै जानने लगा हूँ की
तुम कहोगे नही शायद तुम कुछ नही कहोगे !
प्रस्तुत ब्लॉग के जरिये मै जन -साधारण तक अपने भावनाओं को संप्रेषित करता चाहता हूँ जिससे समाज में एक नयी धारा का प्रवाह हो सके ...मानव आज के इस अर्थ-प्रधान युग में एवं विकाश की इस अंधी दौड़ में सामाजिक-मूल्यों एवं उनके ओउचित्य को ही भुला बैठा है ....बस मै अपने कविता के माध्यम से उन सामाजिक ,सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः शुशोभित करना चाहता हूँ जिससे हमारा समाज ही नहीं अपितु समूचा भारत अपने जिस सभ्यता के लिए विश्व के भौगौलिक पटल पर अपनी छाप को बनाये हुए था वो ठीक उसी प्रकार बनी रहे!
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