शनिवार, 6 जून 2009

इंसानियत

मै कवि नही एक इन्सा हूँ
जो भावुकता के लहरों में
हर पल डूबा रहता हूँ
मै कवि नही एक इन्सा हूँ!
मेरे नयनो में भावुकता है
जो अश्रु का निर्माण करे
जो मन को निश्चल पाक करे
मै कवि नही एक इन्सा हूँ!
मेरे हृदय में करुणा वास करे
जो जीवन का उद्धार करे
पड़ चिह्नों का निर्माण करे
जो आयेंगे वो गायेंगे
आदर्शो को गले लगायेंगे
वो मानव की महिमा गायेंगे !
करुणा को गले लगायेंगे
मै कवि नही एक इन्सा हूँ !
मै कवि नही एक इन्सा हूँ ...!


मेरे राह में काटें भरे पड़े
नित मेंरे उस पर पावँ पड़े
जब पाँव पड़े तो सिहर उठे
तत् चरण के कोमल स्पर्शो से
जो पल में कोमल फूल बने
ममता की प्यासी मूरत ने
जीवन काटों का विभोर किया
जब काटें फूल में बदले थे
तब इन्सा क्यों नही बदले है
मै कवि नही एक इन्सा हूँ
मै कवि नही एक इन्सा हूँ
मुझमे प्रकृत की एक धारा है
जो नव जीवन का निर्माण करे
नित नूतनता से प्यार करे
प्रेम के शीतल धागा से
एक माला का निर्माण करे


मै कवि नही एक इन्सा हूँ
मै कवि नही एक इन्सा हूँ!


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें