मंगलवार, 9 जून 2009

मनुष्य के सन्दर्भ में विचार करने योग्य बातें !

मानव विकसौन्मुक्त प्राणी है वह अपने जीवन काल में अनेकों उत्पत्ति करता है,सृजन करता है अंततः विकाश के उस पथ पर आरूढ़ हो जाता है जिस वह जीवन काल तक चलता रहता है
मनुष्य जब जन्म लेता है तब वो अबोध रहता है ,असहाय रहता है एवं रोया बिलखता है ,कदाचित उसे अपने अस्तित्व का भी ज्ञान नहीं रहता है वह भीतर से शुद्ध निर्मल एवं पवित्र रहता है उसकी आत्मा दुध की भांति श्वेत एवं निर्जल है वह धीरे धीरे बड़ा होता है और उसके जीवन में कई उतार चढाव आतें है जिसको वह सहता है एवं उससे ऊपर उठते हुए एक व्यवहारिक जीवन की कामना करते हुए एक विलक्षण अध्याय एवं समाज की रचना करता है

    • मानव का स्थाई रवैया ही उसके समाज के चरित्र एवं स्थाई आधार का संरचना करता है
    • मानव के मानवीय गुणों का विकाश उसके सामाजिक परिवेश पर निर्भर है
    • व्यक्ति अपनी काल ,परिस्थियाँ और परिवेश के अनुसार ही अपने व्यक्तीत्व का निर्माण कर पाने में सहज समर्थ हो पता है
    • मनुष्य एक भावनात्मक प्राणी है,उसके भीतर बुद्धि एवं विवेक की उपस्थिति सामान रूप से होती है
    • मानव की सोच उसके क्षमता का निर्धारण करती है परन्तु उसकी क्षमता उसके सोच से कई गुना बड़ी होती है
    • मानव संघर्षशील प्राणी है जो जीवन पर्यंत संघर्षरत रहता है किंतु जब वो थक जाता है तत्पश्चात ही जीवन की अंत दिशा सुनिश्चित हो जाती है
    • मनुष्य एक प्रेरणाकारी प्राणी है वह जैसा प्रेरणा पाता है उसके विचार की प्रधानता उसी कर्म की ओर अग्रसर हो जाती है
    • मानव व्यवहार व्यवस्था को जन्म देती है अंततः व्यवस्था मानव चरित्र ,विकाश एवं उसके आचार-व्यवहार के साथ में उसके प्रतिक्रिया का भी निर्वहन एवं निर्गमन करती है
    • मानव अपने व्यवथा के अनुसार ही अपने परिपेक्ष्य का निर्माण करता है
    • मनुष्य में चेतना की प्रधानता उसके अंतर्मन में विद्यमान है कदाचित् सही अवसर प्रदान न होने के कारण उसकी चेतना निद्रावस्था में विद्यमान है जो सर्वथा अनुचित है
    • मनुष्य की उपलब्धि उसके कार्य शैली पर निर्भर करती है, उसकी शैली उसके मनोविज्ञान पर निर्भर करती है ,जो किसी परिवेश,समाज एवं व्यवस्था के अर्न्तगत विकसित होती है जो की निश्चित वातावरण के अनुसार मनोदशा का निर्माण करता है जिसका सीधा सम्बंध भावना एवं चेतना से है !
    • मानव शैली एवं उसके गुणों का विकाश उसके स्वयं के व्यवहारों एवं दृष्टिकोण पर निर्भर है जो उसके स्वयं के विचार,बोध एवं बुद्धिमता से प्रभावित एवं परिचालित है
    • मानव ज्ञान की उपलब्धि उसके लिए नही अपितु पूरे समाज के लिए है जो सामाजिक संरचना को एक नवीन आधार प्रदान कर सकता है
    • मनुष्य अपने व्यवहारों का स्वयं संपादक होता है जिसके नियंत्रण में उसका महत्वपुर्ण योगदान है अन्य सिर्फ़ पथ-प्रदर्शक का कार्य करते हैं

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