रविवार, 12 फ़रवरी 2012

नारी की अभिलाषा


नारी की अभिलाषा को
 जग वाले न समझेंगे 
मर्दों की दुनिया में 
नारी रिश्तों में आकीं जाएगी 
एहसासों का मोल नहीं 
तन से ही तौली जाएगी 
प्यार की अंधी आड़ में 
नारी मर्दों में परोसी जाएगी 
हवास की जलती आग में 
नारी सदा ही झोकी जाती है ,
दुनिया का दस्तूर अजब हैं 
समय काल  की  रीत अजब हैं    
रिश्तों की बुनियाद है नारी 
हर समाज पर कर्ज है भारी |



हुस्न की मलिका

ए हुस्न की मलिका जवान दिलो पे यूँ न कहर बरसाया करो 
ए शोख आदाओं से हमको हर बार न तुम तड़पाया करो 
तेरे कातिल नज़रों ने जालिम सरे आम दिलों पे वार किया 
ए हुस्न की मलिका जवान दिलो पे यूँ न कहर बरसाया करो ....
ए परवानो तुम क्या जानो जलना तो तेरी फिदरत है 
ए हुस्न के दीवानों हम पर मरना तो तेरी किस्मत है 
ए हुस्न की मलिका जवान दिलो पे यूँ न कहर बरसाया करो......
इश्क की दरिया में हमको सौ बार डुबाया है हमको 
दिल नशी जवानी ने जानम मधहोश बनाया हैं हमको 
ए हुस्न की मलिका जवान दिलो पे यूँ न कहर बरसाया करो.......
ए हुस्न समां के परवानो तेरे प्यार की आदत हैं हमको
तुम प्यार करो तुम प्यार करो इठलाना मेरी आदत हैं
ए हुस्न की मलिका जवान दिलो पे यूँ न कहर बरसाया करो ...!



शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

मेरी रचना मेरा संग्रह

मेरी रचना मेरा संग्रह
आज एक नए इतिहास का आगाज होगा !
उस इतिहास का एक नया पैगाम होगा !

एक धर्मं के ठेकेदार से तो एक वेश्या अच्छी हैं जिसका कोई धर्म, जात-पात  नहीं हैं, जो जात पात से ऊपर उठ कर अपने तन का सौदा करती है जो उसकी मजबूरी का एक जीता-जागता उदहारण है जिसकी वजह से हमारे समाज का सांस्कृतिक  मुखोटा बचा रहता है अपितु अपने देश  को खोखला नहीं करती परन्तु जो धर्मं के नाम पर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे धर्मं के ठेकेदार अपने देश के सपूतो को जो एक ही माटी में जन्मे, खेले और समां गए, उन्हें बाटते हैं अलगाववाद भूमिवाद जैसे सामाजिक श्राप को जन्म देतें हैं |
 इस पोस्ट पर आपके विचार आमंत्रित हैं !