एक धर्मं के ठेकेदार से तो एक वेश्या अच्छी हैं जिसका कोई धर्म, जात-पात नहीं हैं, जो जात पात से ऊपर उठ कर अपने तन का सौदा करती है जो उसकी मजबूरी का एक जीता-जागता उदहारण है जिसकी वजह से हमारे समाज का सांस्कृतिक मुखोटा बचा रहता है अपितु अपने देश को खोखला नहीं करती परन्तु जो धर्मं के नाम पर अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे धर्मं के ठेकेदार अपने देश के सपूतो को जो एक ही माटी में जन्मे, खेले और समां गए, उन्हें बाटते हैं अलगाववाद भूमिवाद जैसे सामाजिक श्राप को जन्म देतें हैं |
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