शुक्रवार, 12 जून 2009

सुपुर्दे खाक

नेश्तो नाबुद कर देंगे
तेरे नापाक इरादों को
जला कर खाक कर देंगे
तेरे खुदगर्ज आवामों को

बड़े तेरे कदम सुन
हमारे स्वर्ग सी धरती पर
सुपुर्दे खाक कर देंगे
तेरे इंसानी ढाँचे को

जहर घोला है जो तुमने
हमारे अमन आवामों में
उन्हें अब दूर कर देंगे
हम सब एक हो कर के

अँधेरा तुम जो करते हो
हमारे घर के आँगन में
समां हम रोशन कर देंगे
तेरे उन चिता की आगो से

तेरे आतंक का साया
अब हम छाने देंगे
तेरे गुस्ताख मंसूबो को
पुरा होने देंगे
तेरे हर जुल्मो सितम का
हम गिन-गिन कर बदला लेंगे
तेरे नामो निशां को ही मिटा कर दम लेंगे ||

5 टिप्‍पणियां:

  1. The author seems to be a simple human being who wants to make some changes in the dirty society. I have gone through the above poem several times coz its very energetic in nature.

    I would like to thank the poet truly....Its awesome buddy....just keep it up......

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  2. कविता आह्वान करती है एक क्रान्तिदर्शी सर्जक की भावना के अनुरुप विश्व के निर्माण मे आस्वादक के सहभाग का. संयोग से इस कविता में भाव है, आह्वान है साथ ही साथ एक सुन्दर समाज के निर्माण की कामना भी है

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  3. is kavita ke madhyam se aam aadmi ki awaj ko uthaya hai ....

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  4. hope d country will get d meaning and get unite to fight against terrorism for d peace ............
    jai ho ..jai ho

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