कोरस कहता है की दिल
वह तमन्न्नाओं का ढेर नही तुम
सीने में दबी वह उनकी यादें
जिसे उभर न पता
तुम बिन वह सब व्यर्थ
नही जान पाया तुम्हारे
उस खूबसूरती को जिसको कभी
मन की आँखों से देखा ही नही
में जब तक कोरस था
तब तक तो कहता ही रहता था
पर अब न जाने क्यों लिखने लगा
शायद तुमसे मिलने के बाद
उस मिलन की चर्चा तो न थी
पर यादों को सीने में दबायें रखा
कोरस कहता है मन वो सराया नही
जिसे जब चाहे बसा ले
मन तो इच्छाओ का वो बसेरा है
जिसमे कल्पनाओं की वह सृष्टी
रची जा सकी !
प्रस्तुत ब्लॉग के जरिये मै जन -साधारण तक अपने भावनाओं को संप्रेषित करता चाहता हूँ जिससे समाज में एक नयी धारा का प्रवाह हो सके ...मानव आज के इस अर्थ-प्रधान युग में एवं विकाश की इस अंधी दौड़ में सामाजिक-मूल्यों एवं उनके ओउचित्य को ही भुला बैठा है ....बस मै अपने कविता के माध्यम से उन सामाजिक ,सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः शुशोभित करना चाहता हूँ जिससे हमारा समाज ही नहीं अपितु समूचा भारत अपने जिस सभ्यता के लिए विश्व के भौगौलिक पटल पर अपनी छाप को बनाये हुए था वो ठीक उसी प्रकार बनी रहे!
kavi ne apni bhavnaoun ko atant hi sundar tarike se ek prastut kiya hai jisame man ko saraye ki sangya se mukt karte huye prem ki ek nahi paribhasha ko prastut kiya hai
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