रविवार, 7 जून 2009

मन का सराया

कोरस कहता है की दिल
वह तमन्न्नाओं का ढेर नही तुम
सीने में दबी वह उनकी यादें
जिसे उभर पता
तुम बिन वह सब व्यर्थ
नही जान पाया तुम्हारे
उस खूबसूरती को जिसको कभी
मन की आँखों से देखा ही नही
में जब तक कोरस था
तब तक तो कहता ही रहता था
पर अब जाने क्यों लिखने लगा
शायद तुमसे मिलने के बाद
उस मिलन की चर्चा तो थी
पर यादों को सीने में दबायें रखा
कोरस कहता है मन वो सराया नही
जिसे जब चाहे बसा ले
मन तो इच्छाओ का वो बसेरा है
जिसमे कल्पनाओं की वह सृष्टी
रची जा सकी !

1 टिप्पणी:

  1. kavi ne apni bhavnaoun ko atant hi sundar tarike se ek prastut kiya hai jisame man ko saraye ki sangya se mukt karte huye prem ki ek nahi paribhasha ko prastut kiya hai

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