आज जिस गति से हम और हमारा भारत विकाश कर रहा है वह हमारे आकांक्षाओं के लिए पर्याप्त नहीं है . आज भी भारत की बहुमुखी समाज की कामना सपनो में ही है .हमारे विकाश की परियोजना सिर्फ शहरों तक सिमित हैं ....आओ हम सब मिल कर इसे एक नया रूप दें . एक नयी सोच का निर्माण करे ...आज हम MBA कर के किसी भी कंपनी में विकाश की आधारशीला रखते है ...वही आधारशीला अपने गावं और समाज में रखे ..MBA कर के मेनेजर बन सकते है .....ग्राम पंचायत का मुखिया क्यों नहीं .. विधान सभा का विधायक क्यों नहीं ...संसद सदन का सदस्य क्यों नहीं ..?
प्रस्तुत ब्लॉग के जरिये मै जन -साधारण तक अपने भावनाओं को संप्रेषित करता चाहता हूँ जिससे समाज में एक नयी धारा का प्रवाह हो सके ...मानव आज के इस अर्थ-प्रधान युग में एवं विकाश की इस अंधी दौड़ में सामाजिक-मूल्यों एवं उनके ओउचित्य को ही भुला बैठा है ....बस मै अपने कविता के माध्यम से उन सामाजिक ,सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः शुशोभित करना चाहता हूँ जिससे हमारा समाज ही नहीं अपितु समूचा भारत अपने जिस सभ्यता के लिए विश्व के भौगौलिक पटल पर अपनी छाप को बनाये हुए था वो ठीक उसी प्रकार बनी रहे!
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