शनिवार, 17 मार्च 2012

यादों का लम्हा !

यादों को पिघलने मत देना 
वक्त को गुजरने मत देना 
रातों को बितने से पहले 
सपनों को टूटने मत देना 
यादों को पिघलने मत देना  !
हर सुबह होने से पहले 
एक लम्हा बितने से पहले 
एहसासों को सँजों के रखना 
हर दुआ में मेरा नाम रखना 
यादों को पिघलने मत देना  !
तुम देना पंख मेरे सपनो को 
एक आवाज़ मेरे गीतों को 
चाहे कितनी भी हो रफ़्तार 
एक आशियाना बनाये रखना 
यादों को पिघलने मत देना  !
वक्त को गुजरने मत देना 
मासूमियत को खोने मत देना 
हर साथ को यादगार बना देना
राहों पे पैरों के निशाँ छोड़ देना 
यादों को पिघलने मत देना  !
अपने खुशबू  को फिज़ा में घोल देना
मै आऊंगा तेरे पैरों के निशाँ ढूंढ कर 
उन हवाओं में खुद का पैगां भेज कर 
उन यादों को बाहों में समेट कर ।  




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें