जिस प्रकार मनुष्य के बिना एक समाज की परिकल्पना नही की जा सकती ठीक उसी प्रकार हिन्दी के बिना साहित्य बेजान है | साहित्य और समाज का एक गहरा सम्बन्ध है जो हमारे समाज को एक दार्शनिक रूप प्रदान करता है | सीधे एवं सरल शब्दों में हम यह कह सकते हैं की हिन्दी के बिना साहित्य और साहित्य के बिना समाज अधुरा है || साहित्य समाज का दर्पण होता है जो किसी समय एवं काल को दर्शाता है | साहित्य एक सरल एवं सुगम तरीका है जिससे हम समाज के विभिन्न आयामों की परिकल्पना कर पाने में सहज समर्थ हो पाते हैं | साहित्य एक ऐसा मंच है जिसके जरिये कालांतर में घट रही घटनाओं को चित्रित की जा सके |
प्रस्तुत ब्लॉग के जरिये मै जन -साधारण तक अपने भावनाओं को संप्रेषित करता चाहता हूँ जिससे समाज में एक नयी धारा का प्रवाह हो सके ...मानव आज के इस अर्थ-प्रधान युग में एवं विकाश की इस अंधी दौड़ में सामाजिक-मूल्यों एवं उनके ओउचित्य को ही भुला बैठा है ....बस मै अपने कविता के माध्यम से उन सामाजिक ,सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः शुशोभित करना चाहता हूँ जिससे हमारा समाज ही नहीं अपितु समूचा भारत अपने जिस सभ्यता के लिए विश्व के भौगौलिक पटल पर अपनी छाप को बनाये हुए था वो ठीक उसी प्रकार बनी रहे!
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