मेरे आने के साथ कुछ ढूँढती है निगाहें तेरे क़दमों की आहट और आँखों की काजल जो देती है राहत, एक प्यारी सी शरारत मेरे आने के साथ कुछ ढूँढती है निगाहें ।तेरे आने के साथ एक छाती हैं खामोशी जो लाती है होठो पे एक शांत सी इनायात फिज़ा में घुलती है एक खुशबू की बनावट जो खुद से करती है शराफत की बगावत मेरे आने के साथ कुछ ढूँढती है निगाहें !तेरे कदमो की आहट बढाती है धड़कन जो लाती है एक यादों की मीठी से छुअन जब बैठती हो समेटे शर्म की हया जो लाती है होठों पे मुस्कानों की शिरकत मेरे आने के साथ कुछ ढूँढती है निगाहें !लगने लगती है रंगे फ़िजाएँसोचता हूँ कुछ बयां करूँ पर रुक जातें हैं मेरे होठ जब देखता हूँ तेरे पलकों की हरकत और होठो की शिरकतमेरे आने के साथ कुछ ढूँढती है निगाहें !
प्रस्तुत ब्लॉग के जरिये मै जन -साधारण तक अपने भावनाओं को संप्रेषित करता चाहता हूँ जिससे समाज में एक नयी धारा का प्रवाह हो सके ...मानव आज के इस अर्थ-प्रधान युग में एवं विकाश की इस अंधी दौड़ में सामाजिक-मूल्यों एवं उनके ओउचित्य को ही भुला बैठा है ....बस मै अपने कविता के माध्यम से उन सामाजिक ,सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः शुशोभित करना चाहता हूँ जिससे हमारा समाज ही नहीं अपितु समूचा भारत अपने जिस सभ्यता के लिए विश्व के भौगौलिक पटल पर अपनी छाप को बनाये हुए था वो ठीक उसी प्रकार बनी रहे!
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