मेरी रचना मेरा संग्रह

प्रस्तुत ब्लॉग के जरिये मै जन -साधारण तक अपने भावनाओं को संप्रेषित करता चाहता हूँ जिससे समाज में एक नयी धारा का प्रवाह हो सके ...मानव आज के इस अर्थ-प्रधान युग में एवं विकाश की इस अंधी दौड़ में सामाजिक-मूल्यों एवं उनके ओउचित्य को ही भुला बैठा है ....बस मै अपने कविता के माध्यम से उन सामाजिक ,सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः शुशोभित करना चाहता हूँ जिससे हमारा समाज ही नहीं अपितु समूचा भारत अपने जिस सभ्यता के लिए विश्व के भौगौलिक पटल पर अपनी छाप को बनाये हुए था वो ठीक उसी प्रकार बनी रहे!

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शनिवार, 31 मार्च 2012

हमारा देश वाकई टाटा चाय की भांति उबलता है , रंग भी आता है  और थोड़ी देर बाद ठंडा भी हो जाता है पर जब दुबारा उबलने के लिए रखते हैं तो स्वाद ही बेस्वाद हो जाता है....तो सोचिये जरा हमें टाटा चाय की तरह उबलना है या उस उबाल  को बरकरार रखना है सूर्य की भांति जिसमे ...आपराध ,भ्रष्टाचार और गरीबी जैसी गन्दगी को जला के राख कर दें ।
Posted by मेरी रचना मेरा संग्रह at 12:14 am

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मै एक साधारण एव अत्यंत ही व्यवहारिक किस्म का व्यक्ति हूँ ! मै जीवन के प्रति सम कोड़ एव सकारात्मक सोच रखता हूँ ! मेरा यह मानना है किसी भी चीज का मूल्यांकन उसके वास्तविक एव व्यवहारिक धरातल के पट पर ही करनी चाहिए अन्यथा वो अपने मौलिकता को खो देती है !
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